Saturday, July 31, 2010

‘विश‘

आप से आनंद विहार अड्डे पर पत्रिका लेते समय मिला था। मेरे लैपटॉप को देखकर आपने मुझे अपने ब्लॉग का पता दिया था। वह पर्चा तो कहीं खो गया था परंतु आपके नाम को टाइप करके कई बार देखा।

आपका ब्लॉग नहीं दिखा। कल किसी अन्य के ब्लॉग पर चिठ्ठाजगत का लोगो देखकर उसपर क्लिक किया तो शंकराचार्य और सोने के सिंहासन की बात देखकर उत्सुक हुआ और उसे देखा तो वहां आपका ब्लॉग मिला। उसपर तो घमासान मचा पड़ा है और आप अकेले ही खड़े हैं। आपने बताया था कि समाज के काफी लोग ब्लॉग लिखते हैं, उनमें से वहां तो कोई भी न मिला।

http://hindugranth.blogspot.com/2010/07/blog-post_29.html
आपकी स्थिति देखकर पुरानी आई डी से कमेंट करना ठीक न लगा। सो आज नई आई डी बनाई, नया ब्लॉग बनाया और पहली पोस्ट भी आपकी ही रख दी। धीरे धीरे अपनी कम्यूनिटी के दूसरे सदस्यों को आपके ब्लॉग से परिचित करा दूंगा। तब आप अकेले नहीं रहेंगे।
वैसे एक बार मैं आपकी एजेंसी पर खजूरी गया था , मात्र याद के सहारे , जो आपने बताया था और मैं पहुंच भी गया था परंतु आप लंच के लिये गये हुए थे। जो फोन नं. आपने दिया था वह बंद मिलता है।
अपनी ई मेल एड्रेस सैंड करने की कृपा करें। अपना हौसला बनाए रखें। टिप्पणी कर्ताओं को मैं जानता नहीं परंतु ये हठधरम हैं, ऐसा लगता है, उधर कम्यूनिटी में भी ऐसे बहुत से लोग आते रहते हैं। इनका हित इसी में है सो ये ऐसा करते हैं वर्ना जुल्म को जुल्म ये भी मानते हैं बस एक बार इनके साथ घटित हो जाए । सुविधानुसार आदमी विचार बदलता है। विचार तो वैसे ही अस्थिर होते हैं। आप अपनी जगह स्थिर रहें , बस। ऐसी मैं आपके लिए ‘विश‘ करता हूं।